महानिदेशक का सन्देश
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2020
डॉ. डेविड मोल्डेन-महानिदेशक, अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र
“लैंगिक समानता की लड़ाई एक सतत प्रक्रिया है जो हममें से हर एक से शुरू होती है। सम आ गया है कि हम सच्चे बदलाव के लिए आत्मविश्लेषण करें, अपने अंदर छुपे दुराग्रहों का सामना करें और खुद से सवाल करें।”
आज लैंगिक समानता एक ऐसा विषय है जिसे जीवन के हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। यहाँ तक दुर्गम पहाड़ी इलाक़ों की जन चेतना और विमर्श में भी इसकी मौजूदगी महसूस की सकती है। मानव विकास में लैंगिक असमानता एक बहुत बड़ा अवरोध है, और एक बड़ी आबादी को प्रभावित करता है। इस सत्य को स्वीकार्यता भी प्राप्त है। विकास के क्षेत्र में लिंग एक ज़रूरी और जायज़ ध्यान आकर्षित करने वाला विषय है, क्योंकि इस क्षेत्र में निर्णय लेने समानता की “उम्मीद” करते हैं, और पितृवाद की पुरानी, रूढ़िवादी व्याख्याओं को नहीं मानते। लिंग-आधारित लकीर की फ़क़ीरी और स्पष्ट पक्षपातों पर आधुनिक युग में अक्सर आपत्ति जताई जाती है और इन्हें ठुकराया जाता है।
लेकिन इस आशाजनक प्रगति के बावजूद, 2019 की मानव विकास रिपोर्ट (ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट 19) बताती है कि “पिछले कुछ सालों में लैंगिक समानता का विरोध करने वालों का संख्या के अनुपात में बढ़ोतरी हुई है।” वास्तव में, महिलाओं को अब भी “कमज़ोर” (जिसकी बराबरी अक्सर “कमतर” होने से की जाती है) लिंग समझने वाली सोच को तोड़ना और बदलना काफी मुश्किल रहा है। ये सोच अब भी सारी दुनिया में कायम है, और पहाड़ी समाज भी इससे अछूते नहीं हैं। और ये दिखती है पुरुष और महिलाओं के बीच घर, कार्यस्थल, राजनीति, और फैसले लेने में अधिकारों की गंभीर असमानता में। सच तो यह है कि कई लोग इसी यथास्थिति के बने रहने से खुश हैं, और खुद को इस विषय पर बहस कर लेने भर से प्रगतिवादी दिखाते और समझते हैं। हमें अपनी सोच में असल बदलाव करने की ज़रूरत है –एक ऐसा बदलाव जो हमारे चाल-चलन, हमारे काम में दिखाई दे।
समय आ गया है कि हम आत्मविश्लेषण करें और अपने दुराग्रहों को छोड़े। यह सही समय है जब हम व्यक्तिगत और पेशेवर दोनों स्तरों पर इस यथास्थिति को चुनौती दें। हमें बराबरी की इस लड़ाई में अब समूहों, समाजों, संगठनों, और संस्थानों के पीछे नहीं छुपना चाहिए। हमें मानना चाहिए कि हममें से एक-एक व्यक्ति मिल कर ही ये समूह, समाज, संगठन, और संस्थान बनाते हैं। और जब तक हम नहीं बदलेंगे, तब तक हमारे संगठन नहीं बदल सकते। हममें से हर एक को इस असमान यथास्थिति को बढ़ावा देने वाली अपनी मान्यताओं, अपने रवैये, व्यवहार, और अपनी भूमिका पर फ़ौरन ध्यान देने की ज़रुरत है। ज़रुरत यह है कि हम असंतुलनों और अन्यायों को सुधारने की ओर ठोस कार्रवाई के रूप में एक व्यक्तिगत और वचनबद्ध सफर तय करते हुए समावेशी प्रथाओं का समर्थन करें।
महिलाएं अपनी भूमिका निभा रही हैं पर व्यवस्थाएं उनका साथ नहीं दे रहीं। हिन्दुकुश हिमालय में हमारे अध्ययनों से हमें पता चला कि (अधिकांशतः) पुरुषों के शहरी इलाकों में बढ़ते पलायन की वजह से पुरुषों और महिलाओं की भूमिकाएं और उनके अधिकार क्षेत्र बदल रहे हैं। नयी भूमिका और नए क्षेत्रों में धकेले जाने के कारण महिलाएं अब निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में हर तरह की ज़िम्मेदारियां संभाल रही हैं। और इस प्रक्रिया में उनकी क्षमताओं और योग्यताओं दोनों का विकास हो रहा है। फिर भी, समाज में उनके योगदान को कम आंका जाता है। जैसे कि, अब भी उन्हें “किसान” नहीं, “सहायक” समझा जाता है, और वे अब भी “कामकाजी मॉँएं/महिलाएं” हैं। यानी उनकी पहली ज़िम्मेदारी अब भी घर का काम है। बुनियादी असमानताएं अब भी बरकरार हैं। निर्णयन संस्थाओं में भी महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है। संस्थागत ढाँचे और प्रक्रियाएं अब भीपितृसत्तात्मक/पैट्रीयार्कल और काफी हद तक पुरुष प्रधान हैं। नतीजतन जो नीतियां बनती हैं वह महिलाओं से पक्षपात करने वाली होती है। जैसे कि, हिन्दकुश हिमालय के अधिकांश देशों में रोजगार और भूमि अवधि से जुड़ी नीतियां पुरुषों की तरफ झुकी हुई हैं। नए क्षेत्रों में अपनी नयी भूमिकाओं में बढ़ती असुरक्षा से जूझती महिलाओं की सुरक्षा और निवारण के तंत्रों तक पहुँच अब भी सीमित है, और सुधारात्मक नीतियां भी कम ही हैं। इसलिए हमें इन व्यवस्था को सुधारने की जरुरत है, और महिलाओं के साथ काम करने वाले पुरुष इस बदलाव की कुंजी है।
बदलाव हमारे अपने घरों और काम करने की जगहों से शुरू होता है, और इसमें ज़रुरत होती है महिलाओं के साथ रोजाना के हमारे बातचीत और दूसरे संपो पर सम्मिलित तरीके से ध्यान देने की और उनका विश्लेषण करने की। हममें से हरेक को जरुरत है भेदभावपूर्ण तरीकों और व्यवहार — जिन्हें अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है — को छोड़ने की और सकिय से ऐसे लैंगिक असमानता वाले दांचों को ठकराने की।
अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वत विकास केंद्र में हमारा बड़ा आत्म-परिवर्तन है हमारे रणनीतिक नतीजों में लैंगिक समानता और समावेशी विकास का जुड़ना। हमारा इस नतीजे में योगदान ही हमारी सफलता का पैमाना है, और यही हमारी योजना और समीक्षा प्रक्रिया में प्रतिबिंबित है। 2019 में आत्म-परिवर्तन की तरफ हमारा एक और महत्वपूर्ण कदम था “कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम और निवारण की नीति और प्रक्रियाओं” को लागू करना।
इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर, आइये हम खुद को बदलने का, असमानता को दूर करने का, कट्टरपन को ख़त्म करने का, यथास्थिति को चुनौती देने का, और घरों, कार्यस्थलों, और समाज में महिलाओं की स्थिति को बदलने और सुधारने का संकल्प करें। आइये हम निष्पक्षता, न्याय, और सही की लड़ाई लड़ते रहने का संकल्प करें। आइये हम सब बनें #EachforEqual (हर एक समानता के पक्ष में).